जबलपुर । गाजरघास या पारथेनियम हिस्टेरोफोरस मनुष्य, पशुओं, फसलों, जैव विविधता व पर्यावरण के लिए एक गंभीर समस्या है। यह मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। इससे श्वांस व त्वचा संबंधी रोग होने का खतरा है। गाजरघास के प्रभावी नियंत्रण में सर्वाधिक कारगर उपाय जैविक विधि है। मेक्सिकन बीटल कीट केवल गाजरघास को खाकर और सूखा कर नष्ट कर देता है। यह वक्तव्य खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. पीके सिंह ने एमपी पावर मैनेजमेंट कंपनी एवं खरपतवार अनुसंधान निदेशालय भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद जबलपुर के संयुक्त तत्वावधान में आज शुक्रवार को शक्ति भवन स्थित केन्द्रीय ग्रंथालय में गाजरघास नियंत्रण पर जागरूकता कार्यक्रम में दिया। इस अवसर पर एमपी पावर मैनेजमेंट कंपनी के मुख्स महाप्रबंधक मानव संसाधन व प्रशासन राजीव कुमार गुप्ता, खरपतवार अनुसंधान निदेशालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वीके चौधरी, वैज्ञानिक डॉ. दीपक पवार, विद्युत कंपनियों के सिविल निकाय के अभियंता व कार्मिक बड़ी संख्या में उपस्थित थे ।
प्रकोप की तरह फैल गई गाजरघास
खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर के प्रधान वैज्ञानिक डॉ पीके सिंह ने कहा कि गाजरघास भारत में सर्वप्रथम वर्ष 1956 में पुणे में देखने को मिली थी लेकिन माना जाता है कि वर्ष 1958 में इसका प्रवेश अमेरिका से आयात किए गए गेहूं के साथ हुआ। अल्पकाल में यह पूरे भारत में प्रकोप की तरह फैल गई।
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