जबलपुर। मप्र हाईकोर्ट द्धारा अधीनस्थ न्यायालयों को 25 प्रकरणों को अनिवार्य रूप से तीन माह की समय सीमा में निराकृत करने संबंधी जारी किये गये रजिस्ट्रार जनरल के आदेश को याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई है। उक्त आदेशों की संवैधानिकता को ओबीसी एडवोट्स वेलफेयर एसोसिशन के प्रतिनिधि पूर्व सेवा निवृत जिला न्यायधीश राजेंद्र कुमार श्रीवास ने अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी है। जिसमें जल्द ही सुनवाई होने की संभावना है। दायर याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा प्रदेश के समस्त जिला न्यायलयो को 21 दिसंबर 22, 5 जनवरी 23 तथा 10 जनवरी 2023 को आवश्यक रूप से 25 प्रकरण प्रत्येक नयाधीश को निराकृत किए जाने के कठोर निर्देश दिए गए है। जिसके कारण विगत कई दिनों से प्रदेश के समस्त अधिवक्ता विरोध स्वरुप न्यायिक कार्य से विरत रहकर न्यायलयो में पैरवी नहीं कर रहे है। जबकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा एआर अंतुले वनाम आरएस नायक एवं अन्य, रामचंद्र राव बनाम कर्नाटक राज्य में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक पीठ द्वारा स्पष्ट किया गया है की राइट टू स्पीडी ट्रायल पक्षकारों का विधिक अधिकार है, लेकिन किसी भी न्यायलय द्वारा प्रकरणों के निराकरण हेतु समयसीमा का निर्धारण नहीं किया जा सकता और न ही सक्षम न्यायलय को किसी भी न्यायलय द्वारा निर्धारित समय सीमा में प्रकरण को निराकृत करने का आदेश दिया जा सकता है।
रजिस्ट्रार जनरल द्वारा नहीं किया गया उल्लेख यदि इस प्रकार के निर्देश जारी किए जाते है तों नागरिकों के अनुच्छेद 21 में संरक्षित मौलिक अधिकार अच्छादित होंगे। आवेदक का कहना है कि संविधानिक प्रावधानो के अंतर्गत न्यायलय को कानून बनाने का अधिकार नहीं है। प्रकरणों के समय सीमा मे निराकरण से संबंधित कानून बनाने का कार्य सिर्फ विधायिका ही कर सकती है, न्यायलय नहीं। सुप्रीम कोर्ट के उक्त आदेश देश के समस्त न्यायलयों पर संविधान के अनुच्छेद 141 तथा 142 के तहत बंधनकारी होते है। आवेदक का कहना है कि हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा उक्त आदेशों में कानून के किसी भी प्रावधान का उल्लेख भी नहीं किया गया है की हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार संविधान के तथा कानून के किस प्रावधान के तहत उक्त विवादित आदेश जारी करने हेतु सक्षम है। याचिका मे उक्त तीनो आदेशों को संविधान तथा सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फैसलों के विपरीत बताया गया है तथा उक्त तीनों आदेशों को निरस्त किए जाने की याचिका में राहत चाही गई है।