इन्द्र-इन्द्राणियों ने 1008 मंगल-कलशों से जन्माभिषेक किया

जबलपुर। पाडुंकशिला पर भगवान के अभिषेक का इतनादिव्य नजारा था कि लोगों के नयन धन्य हो गए, ह्दय प्रफुल्लित हो गया, मन में आनंद-उल्लास की तरंगें उर्मियों की तरह उठ रही थीं, जैसे कि आनंद का सागर हर ह्दय में लहरा रहा हो। इसी के साथ जय मुनि सुव्रतनाथ भगवान की जय-जयकार का गननभेदी उद्घोष शुरू हो गया, जिसने पूरे वातावरण में भक्ति-भाव का अनुपम संचार कर दिया। पांडुकशिला पर सौधर्म इन्द्र ने भगवान का जन्माभिषेक किया।

 इस दौरान तालियों की गड़गड़ाहट से गुरुकुल परिसर आपूरित हो गया। त्रिलोकपूज्य देवाधिदेव आदिनाथ भगवान को जन्म कल्याणक के बाद सिर पर धारण कर हर्षित भाव-विभोर सौधर्म इन्द्र अद्भुत नजारा पेश कर रहे थे। यह सब श्री वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल, पिसनहारी की मढ़िया के परिसर में श्री मज्जिनेन्द्र जिनबिम्ब प्रतिष्ठा-गजरथ महोत्सव के चौथे दिन हुआ। 

*सपने साकार होते हैं, सत्य के आकार होते हैं-* मुनि श्री योगसागर महाराज सहित अन्य मुनिश्री ने अपने प्रवचनों में कहा कि कौन कहता है सपने साकार नहीं होते होते हैं, सत्य के आकार नहीं होते हैं। ऐसा नहीं है क्योंकि माता मरुदेवी के सपने साकार हुए हैं, कर्मयुग के प्रारंभ में आदिनाथ भारत-भू पर अवतरित हुए हैं। भारतीय वसुंधरा रत्नगर्भा के साथ-साथ साधुगर्भा भी है। धरती की कोख से जहां रत्न निकलते हैं वहीं माता मरु देवी की कोख से आदिनाथ, त्रिशला की कोख से भगवान महावीर और मां कौशल्या की कोख से प्रभु श्रीराम से जगमग चेतन रत्न निकलते हैं। हमारा सौभाग्य इसी परंपरा में संत शिरोमणि 108 आचार्य गुरुदेव विद्यासागर महाराज माता श्रीमंती की पावन कोख एवं पिता मल्लप्पा के घर आंगन को धर्म धन्य कर भारत-भू पर आचार्य भगवान ज्ञानसागर जी से जैनेश्वरी दीक्षा प्राप्त कर रत्नात्रय का दिव्य-प्रकाश प्रदान कर रहे हैं। 

*जन्म हुआ नरनाथ का, धरती हुई सनाथ-* बुधवार को गजरथ स्थल सृजित अयोध्या नगरी में जैसे ही प्रभु आदिनाथ के जन्म की घोषणा ब्रह्मचारी विनय भैया, जिनेश भैया विधानाचार्य ब्रह्मचारी त्रिलोक भैया ने की तो गीत गूंज उठा-''जन्म हुआ नरनाथ का, धरती हुई सनाथ। सुर नर मुनिगण बोलते ,जय-जय आदिनाथ। 

*जयकारा भजन सुनकर इन्द्रलोक भक्तिरस में डूब गया-* जयघोषपूर्वक जिस समय विधानाचार्य ब्रह्मचारी त्रिलोक जी ने अपना प्रसिद्ध भजन जय कारा गाया सारा इन्द्रलोक भक्तिरस में सराबोर होकर झूम उठा। संगीतकार धर्मेन्द्र ने बधाई गाकर इन्द्रांे को भाव-विभोर कर दिया। बधाई उपरांत मुनिश्री संभव सागर महाराज एवं योग सागर महाराज ने जन्म कल्याणक पर प्रकाश डाला। सौधर्म इन्द्र और शची इन्द्राणी के बीच 'जिन-बालक के दर्शन के रोचक संवाद ने सबका मन मोह लिया। विधानाचार्य ब्रह्मचारी त्रिलोक भैया ने प्रभु-जन्म के पूर्व ऐसा दिव्य मंगलमय ध्यान का दिव्य वातावरण बनाया कि सारी सभा गहरे शून्य में चली गई। बांसुरी की सुमधुर-ध्वनि के साथ ओंकार-ध्वनि कोयल की कूक पंछियों का कलरव चारों दिशाओं को सुख-सुकून और शांति  से भर रहे थे। 

ब्रह्मचारी त्रिलोक भैया ने जन्म का चित्र खींचते हुए कहा-''जिस प्रकार से सूरज के निकलने के पूर्व पूरब दिशा में लालिमा छा जाती है ऐसे ही जिन  बालक के माता मरुदेवी रूपी पूर्व दिशा से उत्पन्न् होने के पूर्व ही संपूर्ण ब्रह्मांड में शांति-सुकून छा जाता है, वैसा ही भगवान के जन्म के समय हुआ।

प्रतिष्ठाचार्य विनय भैया और ब्रह्मचारी जिनेश भैया और नरेश भैया ने गर्भ-कल्याणक और जन्म-कल्याणक की अंतरंग मंत्र-विधि को पूरी निष्ठा से संपन्न् किया। सौधर्म इन्द्र ने ऐरावत हाथी पर आरुढ़ होकर 'जिन-बालक को गोद में रखकर दिव्य-घोष वाद्य-यंत्र जयघोष की मंगल-ध्वनियों के साथ हजारों की जनमेदनी के साथ, दिव्य और भव्य-जलूस के साथ वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल में नवनिर्मित मुनि सुव्रतनाथ जिनालय स्थित पांडुकशिला पर जिन-बालक को विराजमान कर समस्त इन्द्र-इन्द्राणियों ने  1008 मंगल-कलशों से जन्माभिषेक किया। रात्रि में मंगल आरती एवं जिन-बालक को पालना झुलाने और बाल क्रीड़ा ने श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। नन्हे- मुन्ने बच्चों का आदि कुमार के साथ खेलना आदि दृश्य इतने प्रभावी ढंग से प्रस्तुत हुए कि संपूर्ण जनमेदनी भाव-विभोर हो गई  *

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